सम्पूर्ण भारतीय सामाजिक संरचना में विषमता एक अनिवार्य अंग के रूप में सदैव विद्यमान नहीं है। कभी इसका आधार वर्ण, कभी जाति तो लिंग रहा है। लैंगिक आधार पर स्त्रियाँ भारतीय सामाजिक व्यवस्था के ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में सदैव ही दोहरे मापदण्ड़ों, दर्ज से प्रेरित उत्पीड़नात्मक व्यवहार का शिकार रही है। समाज में सधवा, विधवा नाम की उपश्रेणियों में स्त्रियों का विभाजन सामाजिक, सांस्कृतिक कारकों पर आधारित स्तरीकरण का स्वयं में एक विशिष्ट स्वरूप है। वर्तमान में वैश्वीकरण के विस्तार के कारण समाज का हर वर्ग प्रभावित हुआ है। महिलाएँ भी इसके प्रभाव से अछूती नहीं रही चाहे वह विधवा हो या सधवा महिलाएं। किन्तु भारतीय समाज पुरूष प्रधान समाज होने के कारण स्त्रियों की सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, सांस्कृतिक शैक्षणिक प्रस्थिति अच्छी नहीं है। घरेलू हिंसा, दहेज हत्या, बलात्कार, कन्याभू्रण हत्या, जाति के बाहर विवाह करने पर आनर किलिंग (हत्या), पारिवारिक निर्णयों में उपेक्षा, सती प्रथा ऐसे कारण हैं, जिन्होंने महिला सशक्तीरण को भी प्रभावित किया है। वर्तमान में विधवा महिलाओं की समस्याएँ एक सामाजिक मुद्दा बन चुका है। अतः प्रस्तुत प्रपत्र का प्रमुख उद्देश्य समाजशास्त्रीय आधार पर विधवा महिलाओं की प्रस्थिति को समझना, उनके लिए विकास के क्या कार्य किए गए, उनका सामाजिक विश्लेषण करना है। भारतीय सामाजिक संस्थायें, परिवार नातेदारी, अन्तः वैययक्तिक सम्बन्धों पर पड़ने वाले प्रभावों एवं इससे उत्पन्न परिणामों का विश्लेषण करना है। प्रस्तुत प्रपत्र द्वैतियिक स्त्रोतों पर आधारित है।
संकेत शब्दरू परिवार, सधवा, नातेदारी, अन्तः वैयक्तिक सम्बन्ध, वैश्वीकरण, स्तरीकरण।