सच्चे अर्थों में मानस वही है, जो चेतन हो। ‘‘चेतन मानस की प्रमुख विशेषता चेतना है, अर्थात् वस्तुओं, विषयों, व्यवहारों का ज्ञान।... चेतना की प्रमुख विशेषताएं हैं, निरंतर परिवर्तनशीलता अथवा प्रवाह, इस प्रवाह के साथ-साथ विभिन्न अवस्थाओं में एक अविच्छिन्न एकता और साहचर्य।’’ (हिंदी साहित्य कोश, भाग-1, पृ. 247) साहित्यकार के मानस की यही चेतना मानवीय परिवेश और संवेदनाओं की अभिव्यक्ति की आधार भूमि के रूप में कार्य करती है। मानवीय चेतना के स्रोत इसी अवधारणा में निहित है। ‘‘मानवतावाद का /येय है सभी व्यक्तियों में एक-दूसरे के साथ अंतः मधुर संबंध और सौहार्द्रपूर्ण संबंध स्थापित करना। मानवतावाद में मानवीय मूल्यों तथा मानवीय आदर्शों की प्रधानता रहती है और मानवीय प्रकृति के उस पक्ष पर बल दिया जाता है, जो प्रेम, मैत्री, दया, सहयोग तथा प्रगति के रूप में प्रकट होती है। इसमें मानव की स्वतंत्रता, गरिमा, महिमा आदि का प्रतिपादन किया जाता है और समस्त मानवता के कल्याण की भावना निहित रहती है।’’ (पाश्चात्य साहित्यशास्त्र-कोश, राजवंश सहाय ’हीरा’ पृ. 239) मानवतावाद की अवधारणा के अंतर्गत वे सभी तत्व-भाव निहित है, जो मानव के सम्मानपूर्वक जीवन के लिए अनिवार्य है। मानवतावादी विचारकों ने साहित्य को मानवीय चेतना की समृद्धि के संदर्भ में ही देखा है। ‘‘मानवतावादियों के अनुसार साहित्य में मनुष्य की इच्छा, आकांक्षा, वासना, प्रवृत्ति, पराक्रम तथा चिंतना का चित्रण होना चाहिए और उसकी रुचि का वर्णन और पोषण हो, संक्षेप में वही साहित्य मानववादी हो सकता है, जो हमारे मन में मानवीय चेतना को उदबुद्ध और समृद्ध कर सके।’’ (पाश्चात्य साहित्यशास्त्र-कोश, राजवंश सहाय ’हीरा’ पृ. 239)