यह शोधपत्र भारत के केंद्रीय बजट 2025 के संदर्भ में व्यापार वृद्धि और उद्यमिता पर राष्ट्रीय बजट आवंटनों के प्रभाव का विश्लेषण करता है। भारत जैसे विकासशील देश में सूक्ष्म, लघु और म/यम उद्यम (डैडम्) तथा स्टार्टअप अर्थव्यवस्था के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। यह अ/ययन इस बात की जाँच करता है कि सरकार द्वारा घोषित राजकोषीय उपाय-जैसे कि ऋण गारंटी योजनाएँ, कर छूट, डिजिटलीकरण को प्रोत्साहन, महिलाओं व हाशिए पर स्थित समुदायों को वित्तीय सहायता, और औद्योगिक अवसंरचना विकास-व्यवसायों को कैसे प्रभावित करते हैं। शोध में यह पाया गया कि ऋण तक आसान पहुँच, कर प्रोत्साहन और डिजिटल साधनों के लिए सब्सिडी जैसे उपाय व्यवसायों की परिचालन लागत को घटाते हैं और नवाचार को प्रोत्साहित करते हैं। उदाहरणस्वरूप, एक स्टार्टअप ने सरकार की सहायता से अपने संचालन का डिजिटलीकरण कर अंतरराष्ट्रीय बाजारों में प्रवेश पाया, जबकि एक महिला उद्यमी ने विशेष योजना का लाभ उठाकर स्थानीय स्तर पर रोजगार सृजन किया। इस प्रकार के केस अ/ययन यह दर्शाते हैं कि सही नीति क्रियान्वयन से समावेशी और सतत् आर्थिक विकास संभव है। हालांकि, शोध यह भी रेखांकित करता है कि योजनाओं का प्रभाव उन तक पहुँच और क्रियान्वयन की दक्षता पर निर्भर करता है। ग्रामीण और दूरस्थ क्षेत्रों में योजनाओं की जानकारी का अभाव, तकनीकी संसाधनों की कमी, और नौकरशाही जटिलताएँ इन प्रयासों की सफलता में बाधक बन सकती हैं। अंततः, यह शोध सुझाव देता है कि बजटीय उपायों की निरंतर निगरानी, पारदर्शिता, और स्थानीय भागीदारी सुनिश्चित करके भारत एक अधिक समावेशी, नवाचार-सक्षम और वैश्विक प्रतिस्पर्धी उद्यमशीलता पारिस्थितिकी तंत्र विकसित कर सकता है।
शब्दकोशः राष्ट्रीय बजट, व्यापार वृद्धि, उद्यमिता, डैडम्, डिजिटलीकरण।