पं. दीनदयाल उपाध्याय के ‘एकात्म मानववाद दर्शन’, ‘एकात्म अर्थव्यवस्था’, एवं ‘भारतीय संस्कृतिनिष्ठ राजनीतिक विचार’, मौलिक देन है।’‘एकात्म मानववाद दर्शन’ पश्चिम विचारधाराओं के विरोध एवं भारतीय संस्कृति के समर्थन का परिणाम है। पश्चिमी विचारों में शाश्वत सत्य या पूर्णता और स्थिरता का अभाव पाया जाता है। वहाँ प्रत्येक नये विचार की शुरुआत प्रतिक्रिया का परिणाम है। उनके विचारों में सर्वत्र एकरूपता का अभाव है। खण्ड-खण्ड में विचार करने की प्रणाली वहाँ प्रचलित है। उनकी प्रत्येक विचारधारा भावात्मक नहीं अपितु ज्ञान, बुद्धि एवं तर्क का परिणाम है। उन्होनें व्यक्ति, परिवार, समाज, राष्ट्र एवं विश्व का अलग-अलग घटकों के रूप में चिन्तन किया। इसमें एकता, समरसता, समन्वयता, पूरकता, पारस्परिकता एवं अनुकूलता का अभाव महसूस तक नहीं किया। यह सही है कि पश्चिमी विचारकों ने उनका सूक्ष्मता से अ/ययन किया किन्तु बाहर से अलग-अलग दिखाई देने वाली इन इकाइयों को जोड़ने वाली जो एक सुदृढ़ आन्तरिक कड़ी होती है, उसको छूने का प्रयत्न तक नहीं किया। पश्चिमी विचारकों ने अपने चिन्तन का केन्द्र बिन्दु व्यक्ति को माना एवं इसका विचार किया। इसके बाद उन्होंने परिवार का विचार व्यक्ति को परिवार से अलग रखते हुए, समाज का विचार किया, परिवार को अलग रखते हुए एवं समाज को अलग रखते हुए राष्ट्र का विचार किया और इस तरह राष्ट्र को अलग रखते हुए विश्व का चिन्तन किया।
शब्दकोशः एकात्म अर्थव्यवस्था, संस्कृतिनिष्ठ राजनीतिक, सर्वत्र एकरूपता, समाज, भारतीय संस्कृति।