शिक्षा को एक प्रमुख उपकरण माना जाता है कि वह समाजिक परिवर्तन और समावेशन को बढ़ावा देती है, लेकिन भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में यह एक समान रूप से उपलब्ध नहीं है। जाति, वर्ग और सामाजिक पहुँच जैसे संरचनात्मक कारक शिक्षा तक पहुँच को व्यापक असमानता पैदा करते हैं। प्रस्तुत शोध-पत्र शैक्षणिक असमानता की समाजशास्त्रीय समझ विकसित करने का प्रयत्न करता है, विशेषरूप से इस संदर्भ में कि जाति और वर्ग आधारित संरचनाएँ शिक्षा तक पहुँच को कैसे नियंत्रित और सीमित करती हैं। भारत के ग्रामीण समाज में जातिगत पदानुक्रम न केवल सामाजिक सम्मान और संसाधन उपलब्धता को निर्धारित करता है, तथा यह शैक्षणिक अवसरों की उपलब्धता में भी निर्णायक भूमिका निभाता है। अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों एवं अन्य पिछड़े वर्गों के विद्यार्थियों को विद्यालयों तक पहुँचने, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त करने एवं उच्च शिक्षा की ओर अग्रसर होने में अनेक प्रकार की बाधाओं का सामना करना पड़ता है। इसके अलावा, आर्थिक वर्गभेद, जैसे भूमिहीनता, निम्न आय स्तर एवं आजीविका की अनिश्चितता, बच्चों को औपचारिक शिक्षा से वंचित रखने में सहायक कारक बनते हैं। इस अ/ययन को गुणात्मक पद्धति के तौर पर किया गया है, जिसमें उत्तर प्रदेश और म/य प्रदेश के चयनित ग्रामीण क्षेत्रों से केस स्टडी, गहन साक्षात्कार और फोकस ग्रुप डिस्कशन के द्वारा डाटा संकलित किया गया है। अनुसंधान में यह स्पष्ट हुआ कि सामाजिक संरचनाएं, जैसे जातिगत भेदभाव, वर्ग आधारित संसाधन असमानता, और भौगोलिक दूरी, शिक्षा की गुणवत्ता, पहुँच और सततता को गहराई से प्रभावित करती हैं। विद्यालयों की अवस्थिति, अ/यापकों की अनुपलब्धता, भाषा की बाधा और सामाजिक बहिष्करण जैसे पहलू ग्रामीण शिक्षा की विफलता में योगदान करते हैं। इस शोध का उद्देश्य केवल समस्याओं की पहचान करना नहीं, बल्कि यह भी दिखाना है कि इन असमानताओं को किस प्रकार सामाजिक नीति, संस्थागत पुनर्गठन और समुदाय आधारित पहलों के मा/यम से सुधारा जा सकता है। अ/ययन इस निष्कर्ष पर पहुँचता है कि यदि शिक्षा को वास्तव में समान अवसरों का मा/यम बनाना है, तो केवल भौतिक संसाधनों की उपलब्धता पर्याप्त नहीं होगी, बल्कि सामाजिक चेतना, समावेशी नीति निर्माण और संरचनात्मक बदलावों की भी आवश्यकता है।
शब्दकोशः जातिए वर्गए शैक्षणिक असमानताए ग्रामीणभारतए सामाजिक पहुँचए समाजशास्त्रीय विश्लेषण, सामाजिक बहिष्करण।