यह लेख भोजपुरी और मैथिली लोकगीतों में नारी चेतना के बदलते स्वरूप का विगत एक दशक के परिप्रेक्ष्य में विश्लेषण करता है। लोकगीत जहाँ एक ओर सांस्कृतिक स्मृति और परंपरा के वाहक हैं, वहीं वे सामाजिक संरचनाओं में परिवर्तन और प्रतिरोध के स्वर भी समाहित करते हैं। लेख यह रेखांकित करता है कि कैसे स्त्री अनुभवों, आकांक्षाओं और प्रतिरोधों ने लोकगीतों की प्रकृति को बदला है चाहे वह विवाह गीत हो, विदाई गीत हो या देवी स्तुति। आधुनिक संचार माध्यमों, शैक्षणिक हस्तक्षेपों और युवा पीढ़ी की भागीदारी ने लोकगीतों को नए रूप में पुनर्परिभाषित किया है। इस अध्ययन में यह भी स्पष्ट होता है कि लोकगीतों की भाषा, शैली, प्रतीक और दृष्टिकोण में हुए परिवर्तनों ने नारी चेतना को अधिक आत्मसजग, आत्मनिर्भर और प्रतिरोधशील स्वर प्रदान किया है।
शब्दकोशः भोजपुरी लोकगीत, मैथिली लोकगीत, नारी चेतना, स्त्री अनुभव, सांस्कृतिक पुनर्पाठ, प्रतिरोध, लोक परंपरा, डिजिटल लोक, नारीवाद, भाषा-शैली।