श्री रामकृष्ण परमहंस स्वामी विवेकानन्द अज्ञान, जड़ता व तमस से निष्पंद भारत में क्रियाशील ऊर्जा का विस्तार कर, उसके लुप्त गौरव की प्राप्ति के लिए भगीरथ प्रयास इस देश की पुरातन सन्यास परम्परा में हमेशा नया अ/याय था। शिकागों महासभा में मिली दिंगत प्रतिश्रुत सफलता के बाद उस विचार को आकार देने की दिशा में कदम उठाया गया। उनके लिए मातृभूमि का सर्वविध कल्याण सर्वोपरि था। राष्ट्रª उत्थान की उनकी कार्य योजना का आधार श्री रामकृष्ण का ‘‘आ/यात्मिक मानववाद’’ था। श्री रामकृष्ण परमहंस की यह उक्ति कि ‘क्षुधार्त व्यक्ति के लिए धर्म का कोई अर्थ नहीं है’, मानव सेवा को समर्पित श्री रामकृष्ण मिशन की स्थापना की प्रेरणा स्रोत बनी। शिकागों महासभा में विवेकानन्द के आहृान से प्रेरित होकर उनके मिशन के साथ जुड़े लोगों में मार्गरेट एलिजाबेथ नॉबुल का स्थान अनन्य है। प्रमुखतः सत्यान्वेषी मार्गरेट एलिजाबेथ नॉबुल को अपने मन को मथने वाली जिज्ञासाओं का समाधान विवेकानन्दजी से ही प्राप्त हुआ और एक प्रबल प्रेरणा उन्हें गुरुदेव के देश में खींच लायी। भारत में उनके समक्ष विशाल कार्यक्षेत्र था और विवेकानन्द को अपने मिशन की पूर्ति के लिए मार्गरेट एलिजाबेथ नॉबुल जैसी ‘‘सच्ची सिंहनी’’ की ही आवश्यकता थी।
शब्दकोशः राजनीतिक चिन्तन, राष्ट्रीयता, मानववाद।