यह शोध-पत्र अनुसूचित जाति की महिलाओं के लिंग-आधारित सामाजिक अनुभवों में जातिगत भेदभाव की भूमिका का समाजशास्त्रीय विश्लेषण प्रस्तुत करता है। भारतीय समाज में जाति और लिंग, दोनों ही सामाजिक स्तरीकरण की महत्वपूर्ण श्रेणियाँ हैं, जो न केवल व्यक्तिगत पहचान बल्कि सामाजिक संबंधों, अवसरों और संसाधनों की उपलब्धता को भी निर्धारित करती हैं। अनुसूचित जाति की महिलाएँ दोहरी सामाजिक वंचना - एक ओर जातिगत भेदभाव और दूसरी ओर पितृसत्तात्मक संरचनाओं - का सामना करती हैं। इस अध्ययन का उद्देश्य जातिगत भेदभाव के विविध स्वरूपों, उनके लिंग पहचान पर पड़ने वाले प्रभावों तथा सामाजिक गतिशीलता पर इसके परिणामों का विश्लेषण करना है। अध्ययन में गुणात्मक शोध पद्धति का उपयोग करते हुए साक्षात्कार, केस स्टडी और प्रेक्षण विधियों के माध्यम से आंकड़े संकलित किए गए। अनुसंधान में यह पाया गया कि सार्वजनिक और निजी दोनों ही सामाजिक क्षेत्रों में अनुसूचित जाति की महिलाओं को बहुआयामी भेदभाव का सामना करना पड़ता है। उनकी लिंग पहचान जातिगत अपेक्षाओं, यौनिकता, श्रम विभाजन तथा सामाजिक सम्मान की संरचनाओं से गहराई से प्रभावित होती है। इसके अतिरिक्त, शिक्षा, रोजगार, विवाह और राजनीतिक भागीदारी के क्षेत्र में भी उन्हें पितृसत्ता और जातिवादी पूर्वग्रहों के संजाल से संघर्ष करना पड़ता है। यह शोध निष्कर्ष प्रस्तुत करता है कि अनुसूचित जाति की महिलाओं की लिंग पहचान न केवल लिंग के आधार पर बल्कि जातिगत पदानुक्रम की जटिलताओं के अनुरूप निर्मित होती है। अध्ययन सामाजिक न्याय, लैंगिक समानता और दलित स्त्रीवाद के विमर्श को नई दिशा प्रदान करता है। इसके परिणाम सामाजिक नीति निर्माण, लैंगिक-संवेदी कार्यक्रमों और सामाजिक पुनर्व्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण सिफारिशें प्रस्तुत करते हैं।
शब्दकोशः अनुसूचित जाति, लिंग पहचान, जातिगत भेदभाव, पितृसत्ता, समाजशास्त्रीय विश्लेषण, दलित स्त्रीवाद।