बीकानेर जैसे अर्ध-शुष्क क्षेत्र में जल का प्रश्न सदैव से जीवन और राजनीति का केंद्रीय विषय रहा है। इस क्षेत्र की पारंपरिक जल व्यवस्थाएँ-कुएँ, बावड़ियाँ, टांके और जोहड़-प्राचीन काल से ही यहाँ की जनजीवन की रीढ़ रही हैं। मध्यकालीन कालखंड में स्थानीय सामंतों और शासकों द्वारा निर्मित सिंचाई साधनों ने सामाजिक सत्ता के केंद्रीकरण को बल दिया। स्वतंत्रता के बाद, बीकानेर की सिंचाई व्यवस्था में निर्णायक मोड़ तब आया जब 1958 में राजस्थान नहर परियोजना की शुरुआत हुई, जो बाद में 2 नवंबर 1984 को इंदिरा गांधी नहर परियोजना (प्ळछच्) के रूप में नामित हुई। यह परियोजना न केवल बीकानेर के शुष्क भूभाग में जल पहुंचाने का माध्यम बनी, बल्कि इसने कृषि, आवास और सामाजिक ढाँचों में क्रांतिकारी परिवर्तन लाए। हालांकि इंदिरा गांधी नहर परियोजना का उद्देश्य क्षेत्रीय विकास था, लेकिन इसके जल वितरण ने नई प्रकार की जल-राजनीति और सामाजिक असमानता को जन्म दिया। कुछ क्षेत्रों में जल की अधिक उपलब्धता ने वहाँ की कृषि और अर्थव्यवस्था को सशक्त किया, जबकि अन्य जलवंचित क्षेत्रों में सामाजिक तनाव, संघर्ष और आंदोलन उभर कर सामने आए। यह स्पष्ट होता है कि बीकानेर में जल अब केवल भौतिक संसाधन नहीं रहा, बल्कि सामाजिक न्याय, सत्ता-संतुलन और जनचेतना का प्रमुख आधार बन चुका है। अतः बीकानेर की जल-नीति और सिंचाई प्रणालियों का ऐतिहासिक विश्लेषण न केवल अतीत की समझ को गहरा करता है, बल्कि समकालीन जल-संवेदनशील नीतियों के निर्माण हेतु दिशा भी प्रदान करता है।
शब्दकोशः जलराजनीति, सिंचाई, नहरें, विकास, संकट।