जलवायु परिवर्तन का तात्पर्य उन दीर्घकालिक और क्रमिक परिवर्तनों से है जो तापमान, वर्षा, वायु प्रवाह, धूप की तीव्रता एवं वायु गुणवत्ता जैसे जलवायु के मूल तत्वों में कई दशकों में घटित होते हैं। यह न केवल पर्यावरणीय असंतुलन का कारण बनता है, बल्कि सामाजिक, आर्थिक और जैविक स्तरों पर भी गहरे प्रभाव उत्पन्न करता है। औसत तापमान में वृद्धि, अनियमित वर्षा, सूखा, बाढ़, कृषि उत्पादकता में गिरावट और स्वास्थ्य संकट इसके प्रमुख परिणाम हैं। आईपीसीसी की छठी मूल्यांकन रिपोर्ट (।त्6. 2018) इस बात पर बल देती है कि वैश्विक तापमान वृद्धि को 1.50°ब् तक सीमित करना अत्यंत आवश्यक है ताकि जलवायु संबंधी खतरों की तीव्रता को नियंत्रित किया जा सके। मानवजनित गतिविधियाँ जैसे औद्योगीकरण, वनों की कटाई, जीवाश्म ईंधनों का अत्यधिक उपयोग और अनियंत्रित शहरीकरण इन परिवर्तनों को और अधिक गंभीर बना रही हैं। इसके परिणामस्वरूप समुद्र स्तर में वृद्धि, ग्लेशियरों का तीव्र गति से पिघलना, महासागरीय तापमान में वृद्धि तथा अत्यधिक मौसमीय घटनाओं की आवृत्ति में वृद्धि स्पष्ट रूप से देखी जा रही है। रिपोर्ट यह भी दर्शाती है कि उपभोग व्यवहार, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन और तकनीकी नवाचार के मध्य गहरा संबंध है। साथ ही, अल्पकालिक नीतियों को दीर्घकालिक वैश्विक जलवायु लक्ष्यों के अनुरूप बनाने की आवश्यकता पर बल दिया गया है। यह अध्ययन जलवायु परिवर्तन की जटिलताओं, उसके प्रभावों और संभावित नीतिगत एवं तकनीकी उत्तरों को उजागर करता है तथा इस वैश्विक चुनौती से प्रभावी ढंग से निपटने की दिशा में मार्गदर्शन प्रदान करता है।
शब्दकोशः जलवायु परिवर्तन, मौसम, जनसंख्या, विकासशील देश, खाद्य उत्पादन।