भारत में नकदी रहित अर्थव्यवस्था की अवधारणा पिछले एक दशक में विशेष रूप से विमुद्रीकरण (नवम्बर 2016) के बाद तीव्र गति से विकसित हुई है। डिजिटल इंडिया, जन-धन योजना, आधार, और मोबाइल तकनीक की व्यापक पहुंच ने इस परिवर्तन को बल दिया है। नकदी रहित अर्थव्यवस्था का तात्पर्य एक ऐसी प्रणाली से है जहाँ आर्थिक लेन-देन इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों जैसे डेबिटhttps://updes.up.nic.in/क्रेडिट कार्ड, यूपीआई, मोबाइल वॉलेट, नेट बैंकिंग आदि के द्वारा होता है। इससे न केवल लेन-देन में पारदर्शिता आती है, बल्कि कर अपवंचन में भी कमी आती है। कोविड-19 महामारी के दौरान डिजिटल भुगतान में अत्यधिक वृद्धि देखी गई, जिससे यह स्पष्ट हो गया कि नकदी रहित अर्थव्यवस्था न केवल सुविधा का माध्यम है, बल्कि आपदा काल में भी इसकी उपयोगिता सिद्ध होती है। सरकार द्वारा चलाए गए विभिन्न अभियानों जैसे ”डिजिटल भारत”, ”भीम ऐप”, ”न्च्प् 2.0” आदि ने ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में डिजिटल लेन-देन को बढ़ावा दिया है। हालांकि, इस दिशा में कई चुनौतियाँ भी हैं, जैसे डिजिटल साक्षरता की कमी, साइबर सुरक्षा के खतरे, ग्रामीण क्षेत्रों में इंटरनेट की सीमित पहुंच तथा तकनीकी संसाधनों का अभाव। फिर भी, देश की युवा आबादी, तेज़ी से बढ़ती मोबाइल उपयोगिता और सरकारी नीतियों के सहयोग से भारत नकदी रहित अर्थव्यवस्था की ओर तेज़ी से अग्रसर है। इस शोध पत्र में भारत में नकदी रहित अर्थव्यवस्था के वर्तमान परिदृश्य, इसकी संभावनाओं, उपलब्धियों एवं प्रमुख चुनौतियों का विश्लेषण किया गया है। साथ ही यह भी बताया गया है कि कैसे तकनीकी नवाचार और वित्तीय समावेशन मिलकर इस लक्ष्य को साकार कर सकते हैं।
शब्दकोशः नकदी रहित अर्थव्यवस्था, डिजिटल भुगतान, यूपीआई, भीम ऐप, डिजिटल भारत, वित्तीय समावेशन, साइबर सुरक्षा, मोबाइल वॉलेट, नेट बैंकिंग, डिजिटल साक्षरता, आर्थिक सुधार।