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पश्चिमी राजस्थान में भील जनजाति का अ/ययन

ममता (Mamta)

प्रकृति के साथ घनिष्ट रूप से जुड़ी हुई इस भील जनजाति का रोचक इतिहास हमें अपनी ओर आकर्षित करता है। इनकी कला-संस्कृति को जानने व समझने की उत्सुकता इन्हें और अधिक विस्तृत जानने में सहायता सिद्ध होगी। हालांकि भील जनजाति से संबंधित व्यवस्थित ऐतिहासिता अध्ययन की कमी देखने को मिलती है। विभिन्न ऐतिहासिक ग्रंथों में इनका उल्लेख मात्र ही हुआ है। इनके गौरवशाली इतिहास का व्यवस्थित अध्ययन होना आवश्यक है क्योंकि भील जनजाति भारत की सबसे प्राचीन जनजातियों में से एक है और इनकी विशिष्ट संस्कृति, वेशभूषा, खान-पान देश की विविधता को प्रदर्शित करती हैं। अतः इनमें सभ्य समाज के सांस्कृतिक जीवन का आदि स्वरूप दिखाई देता है। इनका जीवन सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियों से भरपूर होता है। भील जनजाति के जीवन में आने वाली हर समस्या से निदान पाने के लिए वे अपने देवी-देवता पर अटूट भरोसा रखते हैं। हालाँकि यह जनजातिय समाज काफी हद तक परम्परावादी, रुढीवादी सोच और अंध विश्वासों से घिरा हुआ है। कृषि कार्यों व पशुपालन में संलग्न होने के बावजूद भी यह जनजाति लोकगीत गाती हैं। मेलों व त्यौहारों का लुफ्त उठाती हैं। वर्तमान समय में कुछ युवा वर्ग अच्छी शिक्षा प्राप्त करके देश में अपनी सेवाएं दे रहे हैं, लेकिन यह मात्रा बहुत कम हैं। भील जनजाति आज के युग से काफी पिछड़ी हुई प्रतीत होती हैं। इनकी समस्याओं का समाधान करके सामाजिक - आर्थिक - राजनीतिक रूप से इन्हें सक्षम बनाने की दिशा में कदम बढ़ाया जाना चाहिए। भील जनजाति में पुरुषों के साथ-साथ महिलाएं भी घरेलू कार्य के अलावा कृषि व पशुपालन कार्यों में शामिल होकर पुरुष को सहयोग देती हैं। इस तरह भील जनजाति के लोग मिलकर खुशहाली के साथ प्रकृति के बीच अपना जीवन व्यतीत करते हैं।

शब्दकोशः भील, जनजाति, संस्कृति, परम्परा, जीवन शैली।


DOI:

Article DOI: 10.62823/IJEMMASSS/7.2(IV).7858

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