ISO 9001:2015

व्यक्तित्व विकास में कर्मयोग की भूमिका

डॉ. पल्लवी एवं डॉ. संतोष विश्वकर्मा (Dr. Pallavi & Dr. Santosh Vishwakarma)

यह शोध-पत्र ‘व्यक्तित्व विकास में कर्मयोग की भूमिका’ विषय पर केंद्रित है, जिसमें श्रीमद्भगवद्गीता के कर्मयोग सिद्धांत को आधुनिक व्यक्तित्व विकास की अवधारणा के संदर्भ में विश्लेषित किया गया है। कर्मयोग का मूल भाव निःस्वार्थ भाव से कर्तव्य का पालन करना और फल की आसक्ति का त्याग करना है। यह अ/ययन दर्शाता है कि कर्मयोग व्यक्ति में मानसिक संतुलन, आत्म-अनुशासन, नैतिकता, और सामाजिक उत्तरदायित्व जैसे गुणों का विकास करता है। निष्कर्षतः, कर्मयोग केवल एक आ/यात्मिक साधना न होकर, एक व्यावहारिक जीवन-दर्शन है जो संपूर्ण व्यक्तित्व के संतुलित और स्थायी विकास में सहायक सिद्ध हो सकता है। 

शब्दकोशः व्यक्तित्व विकास, कर्मयोग।
 


DOI:

Article DOI: 10.62823/JMME/15.03.7878

DOI URL: https://doi.org/10.62823/JMME/15.03.7878


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