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सामाजिक संवेगात्मक अधिगम - एक परिचर्चा

Jyoti Arora & Dr. Sapna Verma


आज के इस मशीनी युग में बदलती शिक्षा व्यवस्था के आधार व प्रतिमान कहीं ना कहीं इस बात को सोचने पर मजबूर कर रहे हैं कि शिक्षा का डिजीटलीकरण व आनलाईन शिक्षा वास्तव में जानने की प्रक्रिया को सीखने तक ले जाने में सक्षम है भी या नहीं। वास्तव में शिक्षा का अर्थ अपरोक्ष रूप से व्यक्ति को वश में करना नही, अपितु उसे सारे समाज के लिए जवाबदेह बनाना है। तेजी से बदलते शैक्षिक आयाम कहीं ना कहीं अपने प्रमुख लक्ष्य से भटकाव का अहसास दे रहे है। आज का बालक जिस प्रकार एक प्रतियोगी समाज की अन्धी दौड़ में दौड़ाया जा रहा है वह किसी भी परिस्थिति में स्वीकार योग्य नहीं हो सकता है। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है जिसके पास मुस्कराने व नम होने जैसे जन्मजात संवेग है । बाहरी रूप से तो सभी एक समान दिखायी देते है, परन्तु हर व्यक्ति की अपनी ही क्षमता व विशेषता होती है और स्वयं को समाज के समकक्ष बनाने की अपनी ही परिधि भी। ऐसी स्थिति में सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि मशीनों से पढ़ने तथा शिक्षक के प्रत्यक्ष संपर्क के अभाव में बालक का सामाजिक व संवेगात्मक विकास सक्षम है भी या नहीं। प्रस्तुत अ/ययन शिक्षा को अंक-प्रक्रिया से इतर समग्र विकास की अवधारणा के रूप में समझने का प्रयास है । इस संदर्भ में यह भी जानने का प्रयास किया गया है कि आज के समानान्तर परिदृश्य में कौन व कैसे बालकों की संवेदनशीलता को सही दिशा में ले जाने का प्रयास कर रहा है । CASEL फ्रेम वर्क क्या है ? SEL कैसे कार्य करती है।

शब्दकोशः CASEL समानुभूति, संवेदी कुशलता, आत्म जागरूकता, डिजीटलीकरण।

Arora, J., & Verma, S. (2025). ??????? ?????????? ????? - ?? ????????. International Journal of Education, Modern Management, Applied Science & Social Science, 07(03(II)), 44–50. https://doi.org/10.62823/ijemmasss/7.3(ii).7920

DOI:

Article DOI: 10.62823/IJEMMASSS/7.3(II).7920

DOI URL: https://doi.org/10.62823/IJEMMASSS/7.3(II).7920


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