‘भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को आमतौर पर केवल राजनीतिक दृष्टिकोण से देखा जाता है, लेकिन यह भारतीय चेतना, सांस्कृतिक अस्मिता और वैचारिक प्रतिरोध का भी प्रतीक था। उपनिवेशवाद ने भारत के सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक जीवन को गहराई से प्रभावित किया। अंग्रेज़ी शासन ने एक ओर शिक्षा, प्रशासन और व्यापार के माध्यम से भारतीय जीवन को नई दिशा देने का प्रयास किया, वहीं दूसरी ओर भारतीय परंपराओं, भाषाओं और सांस्कृतिक मूल्यों को हाशिये पर डालने का कार्य भी किया। यही परिस्थिति भारतीय समाज में एक नई चेतना और प्रतिरोध की भावना को जन्म देती है। इन्नीसवीं शताब्दी में भारतीय समाज में हुए सुधार आंदोलनों-जैसे ब्रह्म समाज, आर्य समाज और अलिगढ़ आंदोलन-ने लोगों में आत्मविश्वास और जागृति पैदा की। पत्रकारिता और साहित्य ने औपनिवेशिक नीतियों की आलोचना करते हुए स्वतंत्रता की चेतना फैलाई। भारतेन्दु हरिश्चंद्र, बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय, रवीन्द्रनाथ टैगोर, बाल गंगाधर तिलक और महात्मा गांधी जैसे चिंतकों ने सांस्कृतिक प्रतिरोध को स्वतंत्रता आंदोलन की मुख्य धारा बनाया। गांधी के नेतृत्व में स्वदेशी आंदोलन और असहयोग आंदोलन ने भारतीय संस्कृति, स्वदेशी वस्त्रों, भाषाओं और परंपराओं को आत्मनिर्भरता तथा स्वतंत्रता का प्रतीक बना दिया।सांस्कृतिक प्रतिरोध साहित्य या चिंतन तक ही सीमित नहीं था, किन्तु यह लोकगीतों, लोकनाट्यों, धार्मिक अनुष्ठानों और लोक परंपराओं के माध्यम से भी प्रकट हुआ। 1857 का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम इस सांस्कृतिक अस्मिता की रक्षा का प्रतीक माना जाता है। बीसवीं शताब्दी में यह प्रतिरोध और भी संगठित हुआ और एक व्यापक राष्ट्रीय चेतना में परिणीत हुआ।यद्यपि इस सांस्कृतिक प्रतिरोध की कुछ सीमाएँ भी थीं-जैसे क्षेत्रीय असमानताएँ, जातीय विभाजन और महिलाओं की सीमित भागीदारी-फिर भी इसने स्वतंत्रता आंदोलन को नैतिक शक्ति, व्यापक जनाधार और वैचारिक गहराई प्रदान की। यह प्रतिरोध भारतीय स्वतंत्रता को केवल राजनीतिक मुक्ति न मानकर, एक सांस्कृतिक जागरण और आत्मिक स्वतंत्रता का स्वरूप प्रदान करता है।अतः यह स्पष्ट है कि भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का वास्तविक आधार सांस्कृतिक चेतना और प्रतिरोध था। इस विमर्श की प्रासंगिकता आज भी बनी हुई है, क्योंकि आधुनिक भारत में भी सांस्कृतिक अस्मिता और राष्ट्रीय एकता की चुनौतियाँ विद्यमान हैं।ख्1,
शब्दकोशः भारतीय चेतना, स्वतंत्रता आंदोलन, सांस्कृतिक प्रतिरोध, उपनिवेशवाद, राष्ट्रीय अस्मिता, स्वदेशी आंदोलन भारतीय साहित्य और पत्रकारिता गांधीवादी विचार।