ISO 9001:2015

विकसित भारत में स्वदेशी उत्पाद की भूमिका

डॉ. अनूप कुमार गुप्ता (Dr. Anoop Kumar Gupta)

भारत एक प्राचीन सभ्यता और विविधताओं से भरा हुआ राष्ट्र है, जिसने अपने लंबे इतिहास में स्वदेशी उत्पादों और कुटीर उद्योगों के जरिए आत्मनिर्भरता और समृद्धि का मार्ग प्रशस्त किया है। आधुनिक काल में विकसित भारत की कल्पना केवल आर्थिक प्रगति तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसमें सामाजिक, सांस्कृतिक और तकनीकी उन्नति भी सम्मिलित है। इस आलोक में स्वदेशी उत्पादों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाती है। स्वदेशी उत्पाद न केवल भारतीय परंपरा, संस्कृति और कला का परिचायक हैं, बल्कि वे स्थानीय संसाधनों और कौशल के प्रयोग से तैयार होकर ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में रोजगार सृजन का माध्यम बनते हैं। आत्मनिर्भर भारत अभियान, मेक इन इंडिया और वोकल फॉर लोकल जैसी सरकारी पहलें इस दिशा में स्वदेशी उद्योगों को सशक्त बनाने का कार्य कर रही हैं। साथ ही, डिजिटल प्लेटफॉर्म और ई-कॉमर्स ने स्वदेशी उत्पादों को वैश्विक मंच पर पहचान दिलाने का अवसर प्रदान किया है।हालाँकि, चुनौतियाँ भी कम नहीं हैं। गुणवत्ता, नवाचार, विपणन और वैश्विक प्रतिस्पर्धा जैसे मुद्दे स्वदेशी उद्योगों के सामने बड़ी बाधाएँ हैं। उपभोक्ताओं की बदलती पसंद और अंतरराष्ट्रीय ब्रांड्स का प्रभाव भी एक चुनौती है। इसके बावजूद यदि इन उत्पादों को तकनीकी सहयोग, प्रशिक्षण, वित्तीय सहायता और नीतिगत प्रोत्साहन मिले, तो वे न केवल भारत की अर्थव्यवस्था को मजबूत करेंगे, बल्कि ’’स्थानीय से वैश्विक’’ के लक्ष्य को भी साकार करेंगे। अतः यह शोध-पत्र इस निष्कर्ष पर पहुँचता है कि विकसित भारत की दिशा में स्वदेशी उत्पादों का योगदान केवल आर्थिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि सांस्कृतिक, सामाजिक और आत्मनिर्भरता के आयामों में भी महत्वपूर्ण है। स्वदेशी उत्पादों का संरक्षण, संवर्धन और प्रचार-प्रसार ही विकसित भारत की मजबूत नींव सिद्ध हो सकता है। 

शब्दकोशः स्वदेशी उत्पाद, विकसित भारत, आत्मनिर्भरता, मेक इन इंडिया, वोकल फॉर लोकल, आर्थिक विकास, सांस्कृतिक पहचान, रोजगार सृजन, वैश्विक प्रतिस्पर्धा, ई-कॉमर्स।


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