सीकर जिला राजस्थान के उत्तर-पश्चिम में मरुस्थलीय भाग में स्थित है। समस्त जिला अर्द्ध शुष्क प्रदेश में पड़ता है। इसके उत्तर-पश्चिमी भाग में शुरू से ही पानी की कमी रही है। जिससे वैयक्तिक और सामुदायिक दोनों स्तर ही परम्परागत जल संरक्षण पद्धतियाँ प्रचलित रही हैं। जलवायु परिवर्तन, बदलती जीवन शैली, बढ़ती हुई जनसंख्या का दबाव और तीव्र औद्योगीकरण के कारण जल संसाधनों पर भी दबाव बढ़ता ही जा रहा है। समाप्त होते सतही जल संसाधन और भू-जल के अंधाधुंध दोहन करने से जिले की भू-जल निष्कर्षण की दर भू-जल पुनर्भरण की तुलना में अधिक आगे निकल गई। यह दर जिले के भू-जल ब्लॉकों में अलग-अलग पाई जाती है। पिछले दो दशकों से जिले में इस तीव्र जल निष्कर्षण की दर ने कृषि में सिंचाई को भी प्रभावित किया है। घटते हुए जल संसाधन और बढ़ती हुई नलकूपों की संख्या के कारण जिले के विभिन्न क्षत्रों में कृषि सिंचाई में भी परिवर्तन आया है। परम्परागत जल संरक्षण विधियाँ आज लगभग मृतप्राय हो गई हैं। वर्तमान में जल संकट के कारण कृषि सिंचाई में नवीन जल संरक्षण विधियों का खूब प्रयोग हो रहा है। किसान अब इनके प्रति जागरूक हुए हैं। जिले में भूरी चट्टानी एवं बलुई-चिकनी मिट्टी वाले क्षेत्रों में ये नवीन संरचनायें बाँध, एनिकट, चेक बाँध, खेत तालाब इत्यादि पाई जाती हैं। इनसे परम्परागत कृषि के साथ-साथ सब्जी उत्पादन, फलोत्पादन भी किया जा रहा है। अध्ययन क्षेत्र में इन नवीन जल संरक्षण विधियों को किन क्षेत्रों में ज्यादा अपनाया गया है, किन में अभी भी और जागरूकता की आवश्यकता है और भू-जल पुनर्भरण में उपयोग ली जाने वाली विधियों का भी अध्ययन करेंगे।
शब्दकोशः भू-जल, निष्कर्षण, सिंचाई, दोहन, जल संरक्षण, पुनर्भरण।
Article DOI: 10.62823/IJEMMASSS/7.3(II).7999