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महर्षि अरविन्द के शैक्षिक चिंतन में योग और अनुशासन का योगदान

मीनाक्षी शर्मा एवं डॉ. सुशीला शील (Meenakshi Sharma & Dr. Susheela Sheel)

महर्षि अरविन्द भारतीय शिक्षा-दर्शन के उन विशिष्ट चिंतकों में माने जाते हैं जिन्होंने शिक्षा को केवल बौद्धिक उपलब्धि या ज्ञान-संचय तक सीमित न रखते हुए जीवन के समग्र उत्थान और आध्यात्मिक विकास का साधन माना। उनका मानना था कि शिक्षा का वास्तविक उद्देश्य मनुष्य के भीतर निहित दिव्यता और आत्मिक शक्ति का प्रकट होना है। इस दृष्टि से उनके शैक्षिक विचार भारतीय सांस्कृतिक परंपरा और आधुनिक युग की आवश्यकताओं के बीच एक सेतु का कार्य करते हैं। अरविन्द के शैक्षिक चिंतन में योग और अनुशासन की भूमिका केंद्रीय है। योग, जो भारतीय दर्शन और साधना की मूल धारा है, व्यक्ति के आंतरिक सामर्थ्य, आत्म-नियंत्रण और चेतना-विस्तार का मार्ग प्रदान करता है। योग के अभ्यास से विद्यार्थी न केवल शारीरिक रूप से स्वस्थ रहते हैं, बल्कि मानसिक एकाग्रता, भावनात्मक संतुलन और आध्यात्मिक जागरण भी प्राप्त करते हैं। इस प्रकार योग शिक्षा को केवल विषय-ज्ञान तक सीमित नहीं रहने देता, बल्कि उसे मूल्यनिष्ठ, आध्यात्मिक और जीवनोन्मुख बनाता है। वहीं अनुशासन अरविन्द की शिक्षा-दृष्टि का दूसरा महत्वपूर्ण स्तंभ है। उनके अनुसार अनुशासन बाहरी नियंत्रण या दंड का परिणाम नहीं होना चाहिए, बल्कि यह आत्म-प्रेरणा और आंतरिक शक्ति से उत्पन्न होना चाहिए। आत्म-अनुशासन विद्यार्थी के व्यक्तित्व को परिपक्व बनाता है, अध्ययन में गंभीरता लाता है और जीवन को नियमित तथा उत्तरदायी दिशा प्रदान करता है। महर्षि अरविन्द अनुशासन और स्वतंत्रता को विरोधी नहीं मानते थे; बल्कि उनके अनुसार अनुशासन ही स्वतंत्रता को सार्थक और उपयोगी दिशा देता है। प्रस्तुत शोध-पत्र में महर्षि अरविन्द के शैक्षिक दृष्टिकोण का विश्लेषण करते हुए यह स्पष्ट किया गया है कि योग और अनुशासन परस्पर पूरक तत्व हैं। योग साधना व्यक्ति की सुप्त क्षमताओं को जागृत करती है, जबकि अनुशासन उन क्षमताओं को व्यवहारिक जीवन में प्रयुक्त करने की क्षमता विकसित करता है। आधुनिक शिक्षा-प्रणाली, जहाँ भौतिक उपलब्धियों और प्रतिस्पर्धा पर अधिक बल दिया जाता है, वहाँ अरविन्द के विचार शिक्षा को संतुलित, मूल्यनिष्ठ और मानवीय बनाने में मार्गदर्शन प्रदान करते हैं। इस शोध से यह निष्कर्ष निकलता है कि समकालीन शिक्षा-व्यवस्था में यदि योग और अनुशासन को समाहित किया जाए, तो शिक्षा का लक्ष्य केवल रोजगार या तकनीकी दक्षता तक सीमित न रहकर, व्यक्ति के नैतिक, आध्यात्मिक और सामाजिक उत्थान तक विस्तृत हो सकता है। इस प्रकार महर्षि अरविन्द का शैक्षिक चिंतन न केवल भारत, बल्कि सम्पूर्ण विश्व की शिक्षा-व्यवस्था को एक नवीन दिशा प्रदान कर सकता है। 

शब्दकोशः महर्षि अरविन्द, योग, अनुशासन, शिक्षा-दर्शन, समग्र शिक्षा।


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