महर्षि अरविन्द आधुनिक भारत के ऐसे महान चिंतक, दार्शनिक और शिक्षाशास्त्री थे जिन्होंने शिक्षा को केवल ज्ञानार्जन या रोजगार प्राप्ति का साधन न मानकर इसे मनुष्य के संपूर्ण व्यक्तित्व-विकास की प्रक्रिया के रूप में देखा। उनका शिक्षा-दर्शन ”पूर्ण शिक्षा” की अवधारणा पर आधारित है, जिसमें शारीरिक, प्राणिक, मानसिक, नैतिक तथा आध्यात्मिक सभी पक्षों का संतुलित और सामंजस्यपूर्ण विकास निहित है। महर्षि अरविन्द का मानना था कि शिक्षा का वास्तविक उद्देश्य व्यक्ति में निहित दिव्य शक्तियों का जागरण करना है, जिससे वह आत्म-साक्षात्कार कर सके और जीवन को उच्चतम आदर्शों के अनुरूप ढाल सके। वर्तमान समय की शिक्षा प्रणाली मुख्यतः ज्ञान-आधारित, रोजगार-परक और प्रतियोगिता-केन्द्रित होती जा रही है। परिणामस्वरूप विद्यार्थियों में तनाव, मूल्यहीनता, और आत्मिक रिक्तता बढ़ती जा रही है। शिक्षा का लक्ष्य केवल व्यावसायिक दक्षता तक सीमित रह गया है, जिससे उसका मानवीय और आध्यात्मिक आयाम उपेक्षित हो गया है। ऐसे समय में महर्षि अरविन्द का शिक्षा-दर्शन न केवल प्रासंगिक है, बल्कि आवश्यक भी है। उनका विचार है कि शिक्षा में योग और ध्यान को स्थान दिया जाए, ताकि विद्यार्थियों में एकाग्रता, आत्म-नियंत्रण और आंतरिक शांति विकसित हो। इसी प्रकार नैतिक शिक्षा और सेवा-कार्य के माध्यम से उनमें उत्तरदायित्व, सहिष्णुता और सामाजिक समरसता की भावना का निर्माण किया जा सकता है। महर्षि अरविन्द द्वारा प्रतिपादित पंचमुखी शिक्षा (शारीरिक, प्राणिक, मानसिक, नैतिक और आध्यात्मिक) आज की शिक्षा व्यवस्था के लिए एक संतुलित और आदर्श रूपरेखा प्रस्तुत करती है। यदि इसे आधुनिक शिक्षा नीतियों और योजनाओं में समुचित रूप से सम्मिलित किया जाए, तो यह शिक्षा को केवल बौद्धिक प्रशिक्षण और रोजगार तक सीमित रखने के स्थान पर उसे आत्म-साक्षात्कार, मानवीय मूल्यों के संवर्धन और वैश्विक शांति की स्थापना का साधन बना सकती है। इस शोध-पत्र का उद्देश्य महर्षि अरविन्द के शिक्षा-दर्शन की मूल विशेषताओं का विश्लेषण करना और आधुनिक शिक्षा प्रणाली में उनके अनुप्रयोग की सम्भावनाओं पर प्रकाश डालना है। अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि यदि अरविन्द के विचारों को व्यवहार में लाया जाए तो शिक्षा विद्यार्थियों को केवल कुशल कर्मचारी ही नहीं, बल्कि उत्तरदायी, संवेदनशील और जागरूक नागरिक भी बना सकती है।
शब्दकोशः महर्षि अरविन्द, शिक्षा-दर्शन, आधुनिक शिक्षा, पूर्ण शिक्षा, योग, ध्यान, नैतिक शिक्षा, मूल्य-आधारित शिक्षा।
Article DOI: 10.62823/IJEMMASSS/7.3(II).8031