भारतीय समाज में नारी शक्ति को जीवन का आधार मानते हुए प्राचीन काल से ही उसे सम्मानित स्थान मिला और इक्कीसवीं सदी में उसने विभिन्न क्षेत्रों में अपनी पहचान बनाकर महिला सशक्तिकरण को नई दिशा दी। सशक्तिकरण का मतलब केवल आर्थिक स्वतंत्रता या सुरक्षा भर नहीं है, बल्कि मानसिक, सामाजिक और सांस्कृतिक स्वतंत्रता भी है। आज मीडिया, शिक्षा और नए सामाजिक दृष्टिकोण ने महिलाओं को आत्मनिर्भरता और सम्मान की ओर अग्रसर किया है। नारी चेतना ने पुरानी सीमाओं को तोड़कर अपनी अस्मिता का एहसास करा रही है। राजस्थान की महिला कथाकारों ने अपने लेखन से समाज की विसंगतियों और पितृसत्तात्मक सोच को उजागर किया। यहाँ का साहित्य दलित, स्त्री और हाशिये पर खड़े वर्गों की पीड़ा का चित्रण करता है। राजस्थान की प्रमुख हिंदी महिला कहानीकारों में आदर्श मदान, मनमोहिनी, कमला गोकलानी, कांति वर्मा, कुसुमांजलि शर्मा, मंजुला गुप्ता, पुष्पा रघु, जेबा रशीद, सावित्री रांका, कमल कपूर, मनीषा कुलश्रेष्ठ, रजनी मोरवाल, दीप्ती कुलश्रेष्ठ, सुखदा कछवाह, विद्या पालीवाल, कुसुम शर्मा, कमलेश शर्मा, कमलेश माथुर, डॉ. मोनिका मिश्रा, करुणा श्री, क्षमा चतुर्वेदी, साधना जे. भट्ट आदि लेखिकाओं ने कहानियों के जरिए स्त्री की संघर्षपूर्ण स्थिति और उसकी आकांक्षाओं को सामने रखा। इन कहानियों में बाल-विवाह, पारिवारिक बंधन, शोषण, गरीबी और असमानता के साथ-साथ स्त्री की आत्मनिर्भरता और आत्मसम्मान की खोज दिखाई देती है। उदाहरण के लिए सुखदा कछवाह की ‘रूठी रानी’ कहानी में बाल विवाह और स्त्री शोषण पर चोट करती है, वहीं विद्या पालीवाल ने परिवार और रिश्तों की जटिलताओं के बीच स्त्री की अस्मिता को स्वर दिया। जेबा रशीद और मनीषा कुलश्रेष्ठ ने स्त्री जीवन की दरिद्रता और विडंबनाओं को अपनी रचनाओं में सजीव किया है। स्पष्ट है कि राजस्थान की महिला कथाकारों ने साहित्य को केवल मनोरंजन का साधन नहीं, बल्कि सामाजिक सरोकारों से जोड़ते हुए दबी हुई आवाजों को शब्द दिए, स्त्री के अधिकारों और आत्मसम्मान की चेतना को उभारा। यही कारण है कि उनके लेखन में नारी सशक्तिकरण की सशक्त गूँज सुनाई देती है। बदलते समय और समाज की पृष्ठभूमि में ये कहानियाँ आज भी प्रासंगिक हैं और नारी की असली गाथा प्रस्तुत करती हैं।
शब्दकोशः महिला सशक्तिकरण, अस्मिता, आत्मसम्मान, सामाजिक सरोकार, राजस्थान की महिला कथाकार, स्त्री विमर्श, दलित एवं हाशिये का वर्ग, पारिवारिक बंधन, शोषण, असमानता, स्त्री चेतना, हिंदी कथा साहित्य।