समय शिक्षा केवल बौद्धिक विकास तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें भावनात्मक, सामाजिक, नैतिक और जीवन-उपयोगी कौशलों का भी समावेश आवश्यक है। सामाजिक एवं भावनात्मक अधिगम (ैवबपंस ंदक म्उवजपवदंस स्मंतदपदहरू ैम्स्) शिक्षार्थियों को अपनी भावनाओं को समझने, दूसरों के दृष्टिकोण को जानने, सकारात्मक संबंध स्थापित करने तथा निर्णय लेने की क्षमता विकसित करने में सहायक होता है। प्रस्तुत शोध-पत्र में समग्र विकास की परिकल्पना, सामाजिक एवं भावनात्मक अधिगम की भूमिका तथा शिक्षण की समाकलित दृष्टि से इसके शैक्षणिक और सामाजिक महत्व पर विचार किया गया है। शिक्षा केवल ज्ञानार्जन या बौद्धिक क्षमता के विकास तक सीमित नहीं है, बल्कि यह व्यक्ति के सम्पूर्ण व्यक्तित्व के निर्माण का आधार है। वर्तमान समय में शिक्षा का उद्देश्य केवल रोजगारोन्मुखी कौशल प्रदान करना नहीं, बल्कि ऐसे नागरिक तैयार करना है जो सामाजिक रूप से उत्तरदायी हों, भावनात्मक रूप से संतुलित हों और जीवन की विविध परिस्थितियों में सकारात्मक दृष्टिकोण बनाए रख सकें। इस सन्दर्भ में सामाजिक एवं भावनात्मक अधिगम (ैवबपंस ंदक म्उवजपवदंस स्मंतदपदह दृ ैम्स्) का महत्व अत्यधिक बढ़ जाता है। ैम्स् शिक्षा प्रक्रिया में वह आयाम है जो विद्यार्थियों को आत्म-जागरूकता, आत्म-प्रबंधन, सहानुभूति, सहयोग, निर्णय-निर्धारण तथा सामाजिक कौशल जैसे जीवनोपयोगी गुण प्रदान करता है। जब इसे शिक्षण प्रक्रिया में समाकलित किया जाता है, तो विद्यार्थियों का विकास केवल शैक्षणिक उपलब्धियों तक सीमित न रहकर समग्र व्यक्तित्व विकास की दिशा में आगे बढ़ता है। सामाजिक एवं भावनात्मक अधिगम की परिभाषाः सामाजिक एवं भावनात्मक अधिगम वह प्रक्रिया है जिसके माध्यम से विद्यार्थी अपने और दूसरों की भावनाओं को समझना, उन्हें नियंत्रित करना, सकारात्मक लक्ष्य निर्धारित करना, दूसरों के प्रति सहानुभूति प्रकट करना, स्वस्थ संबंध विकसित करना तथा जिम्मेदार निर्णय लेना सीखते हैं।
शब्दकोशः सामाजिक एवं भावनात्मक अधिगम, समग्र विकास, आत्म-प्रबंधन, सामाजिक जागरूकता, संबंध निर्माण कौशल, उत्तरदायी निर्णय-निर्धारण, मानसिक स्वास्थ्य, सकारात्मक नागरिकता, सह-पाठ्यचर्या गतिविधियाँ, कक्षा प्रबंधन, जीवन कौशल, बौद्धिक क्षमता, रचनात्मकता, भावनात्मक संतुलन, शिक्षण रणनीतियाँ।