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संपोषणीयताः संरक्षण एवं पुनर्स्थापना

मिनाक्षी जांदू (Meenakshi Jandu)

संपोषणीयता का सामान्य अर्थ वर्तमान आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए संसाधनों के प्रभावी प्रबंधन से है। संपोषणीयता शब्द लैटिन भाषा के सस्निेयर शब्द से लिया गया है जिसका शाब्दिक अर्थ है. बनाए रखना। सतत विकास का मुख्य उद्देश्य मानवी विकास के लक्ष्यों को पूरा करना है जिसमें अर्थव्यवस्था, प्राकृतिक संसाधन, मानवीय संसाधन, पारिस्थितिकी तंत्र, आर्थिक, सामाजिक, पर्यावरणीय विकास सभी पर ध्यान केंद्रित किया जाता है। इस लेख में हम संपोषणीयता के संरक्षण एवं पुनर्स्थापन के विषय में विस्तार पूर्वक चर्चा कर रहे हैं। संरक्षण प्राकृतिक संसाधनों की सुरक्षा और बुद्धिमानी से उसका उपयोग करना है ताकि आने वाली पीढियों के लिए उसे संरक्षित किया जा सके तथा साथ-साथ ही इसके पुनः स्थापना के विषय में भी चिंतन करने की आवश्यकता है।  संरक्षण एक जटिल मुद्दा है इसमें प्रकृतिक व मानवीय प्रणालियों के मध्य सम्बंध्ा को चिंतन पूर्वक समझना शामिल है। संपोषणीयता के संरक्षण एवं पुनर्स्थापना में पारिस्थितिकी तंत्र आधारित प्रबंधन व संपोषणीय आजीविका पारिस्थितिकी तंत्र आदि घटकों के मध्य अतःक्रियाओं को सम्मिलित किया जाता है। पुनर्स्थापना में क्षतिग्रस्त पारिस्थितिकी तंत्र को पुनः उचित एवं स्वस्थ स्थिति में वापस लाना होता है। इसका प्रमुख लक्ष्य स्थिति की क्रियाओं को एवं जैव विविधता तथा प्राकृतिक वातावरण को पुनः स्थिति में प्राप्त करना होता है। जलवायु पुनर्स्थापना से अभिप्राय उन तकनीकियों से है जिनका उद्देश्य वायुमंडल से अतिरिक्त कार्बन डाइऑक्साइड व ग्रीनहाउस गैसों को हटाना तथा पृथ्वी की जलवायु को स्वस्थ व स्थिर स्थिति में लाना है। जलवायु पुनर्स्थापना में कार्बन डाइऑक्साइड, ओजोन गैस का पूनःस्थापन, मिथेन गैस का पुनर्स्थापना आदि को लिया जाता है।

शब्दकोशः संपोषणीयता, संरक्षण, पुनर्स्थापन, पारिस्थितिकी तंत्र, प्रबंधन, जलवायु विनियमन, पर्यावरण संरक्षण, जैव विविधता।


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