वर्तमान न्याय व्यवस्था में कृत्रिम बुद्धिमत्ता आधारित जोखिम-आकलन उपकरण, जोखिम संकेतकों, व्यवहारिक पैटर्न और अपराध की पुनरावृत्ति का विश्लेषण करके न्यायिक निर्णय प्रक्रिया को अधिक सटीक और त्वरित बनाने में न्यायपालिका में प्रौद्योगिकी के विकास से लाभ मिलेगा। किशोर न्याय प्रणाली एक बहुत संवेदनशील क्षेत्र है, जहाँ पुनर्वास और सुधार की विचारधारा दंडात्मक सिद्धांत से अधिक महत्वपूर्ण है। ऐसे में यह महत्वपूर्ण प्रश्न उठता है कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता आधारित जोखिम-आकलन उपकरण बच्चों को न्याय देने में निष्पक्ष, मानवीय और संवेदनशील हैं या ये नए नैतिक और विधिक संकट पैदा कर सकते हैं, जैसे एल्गोरिद्मिक पूर्वाग्रह, डेटा गोपनीयता के खतरे और जवाबदेही की अस्पष्टता। इन प्रश्नों के समाधान हेतु म/यप्रदेश के 289 उत्तरदाताओं से संरचित प्रश्नावली द्वारा प्राथमिक डेटा संकलित किया गया। आँकड़ों के विश्लेषण के लिए एस.पी.एस.एस सॉफ्टवेयर का उपयोग किया गया तथा वर्णनात्मक सांख्यिकी, क्रोनबाख अल्फा, कै-स्क्वायर, सहसंबंध, प्रतिगमन एवं एनोवा परीक्षण लागू किए गए। परिणामों से पता चला कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता आधारित जोखिम-आकलन उपकरण न्यायिक निर्णय प्रक्रिया को वैज्ञानिक, त्वरित और सटीक बनाते हैं, लेकिन नैतिक और विधिक खतरे भी रहते हैं। अ/ययन से पता चलता है कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता तकनीक का उपयोग किशोर न्याय प्रणाली में सिर्फ कठोर नैतिक मानदंड, स्पष्ट विधिक दिशा-निर्देश, डेटा सुरक्षा और पारदर्शी जवाबदेही के साथ किया जा सकता है। कृत्रिम बुद्धिमत्ता न्याय को बेहतर बनाने में मदद करती है, लेकिन अंतिम निर्णय प्रक्रिया में सुधारात्मक - दृष्टिकोण, विवेक और मानवीय संवेदनशीलता की आवश्यकता बनी रहती है।
शब्दकोशः कृत्रिम बुद्धिमत्ता, किशोर न्याय प्रणाली, जोखिम-आकलन, नैतिक आयाम, विधिक आयाम, एल्गोरिथ्म पूर्वाग्रह, डेटा गोपनीयता, सांख्यिकीय विश्लेषण।