संगीत का प्रयोजन सांसारिक चिन्ताओं से दबे हुए थके हुए मानव को उन चिंताआंे से मुक्त कराकर अलौकिक सुख की प्राप्ति कराना है। जिसमें यह गुण हो, उसे ही भलीभाँति गाया हुआ या संगीत (सम्यक्-गीत) कहना चाहिए, अन्यथा वह कोलाहल मात्र है, भले ही वह कोई भी शैली या प्रकार हो। स्वर, भाषा, ताल और मार्ग का आश्रय लेकर ‘गीत‘ मानव की भावना को व्यक्त करता है ‘वादन‘ गीत का सहायक होता है और ‘नृत्य‘ उस भावना को मूर्त कर देता है। इसलिए गीत, वाद्य और नृत्य मिलाकर संगीत कहलाते हैं। गीत संगीत का प्रधान अंश है, वाद्य और नृत्य उसके सहायक है। परंतु गीत सम्पूर्ण संगीत नहीं है। मानव द्वारा गेय गीत के भी चार अंग, राग, भाषा, ताल और मार्ग हैं। इन चारों का प्रयोजन भावना की अभिव्यक्ति है। इसीलिए ये चारों परस्पर सहायक या पूरक हैं, चारों मिलाकर गीत है, इनमें से अकेला रहकर कोई गीत नहीें हैं।
शब्दकोशः राग, रस, भाव, नृत्य, ताल।
Article DOI: 10.62823/IJEMMASSS/7.3(III).8240