भारत जैसे विविधतापूर्ण, विशाल तथा जनसंख्या की दृष्टि से अत्यंत समृद्ध राष्ट्र खेलों के क्षेत्र में अपार संभावनाओं से भरा हुआ है। खेल केवल मनोरंजन, अवकाश या प्रतियोगिता का साधन नहीं हैं, बल्कि वे सामाजिक गतिशीलता, सांस्कृतिक एकता, राष्ट्रीय समरसता तथा व्यक्तिगत विकास का प्रभावी मा/यम भी हैं। खेल संसाधनों, अवसंरचनाओं और अवसरों का समान वितरण ग्रामीण एवं शहरी दोनों क्षेत्रों के सर्वांगीण विकास के लिए अनिवार्य माना जाता है। ग्रामीण क्षेत्रों में जहाँ आर्थिक संसाधनों की कमी, तकनीकी पिछड़ापन और खेल सुविधाओं का अभाव देखने को मिलता है, वहीं शहरी क्षेत्रों में बेहतर खेल अवसंरचना, प्रशिक्षित कोच, तकनीकी साधन और संस्थागत समर्थन उपलब्ध होने के कारण खिलाडियों के विकास की संभावनाएँ अधिक होती हैं। इन परिस्थितियों से उत्पन्न असमानताएँ खेल विकास में एक गहरी खाई उत्पन्न करती हैं, जो न केवल खिलाडियों की प्रतिभा के प्रस्फुटन में बाधा बनती हैं, बल्कि राष्ट्रीय खेल प्रगति को भी प्रभावित करती हैं। इसलिए यह आवश्यक है कि खेल नीतियों का निर्माण संसाधन-समानता, समावेशिता और ग्रामीण-शहरी संतुलन को /यान में रखकर किया जाए। समुचित नीति-निर्माण, सरकारी हस्तक्षेप, सामाजिक सहभागिता और तकनीकी उन्नति से ही खेलों को प्रत्येक क्षेत्र तक पहुँचाया जा सकता है। अ/ययन का मुख्य उद्देश्य ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में खेल संसाधनों की उपलब्धता, पहुँच, उपयोग और गुणवत्ता में विद्यमान विषमताओं का विश्लेषण करना है। यह विश्लेषण यह दर्शाता है कि खेल विकास तभी सम्भव है जब प्रत्येक नागरिककृचाहे वह किसी भी भौगोलिक, सामाजिक या आर्थिक पृष्ठभूमि से हो कृ खेल सुविधाओं का समान रूप से लाभ उठा सके। अतः खेलों का सतत विकास तभी संभव है जब संसाधनों की समानता, अवसरों की समावेशिता और नीति-निर्माण में संतुलन को प्राथमिकता दी जाए।
शब्दकोशः खेल अवसंरचना, संसाधन-विषमता, विकासात्मक असमानता, नीतिगत हस्तक्षेप, सामाजिक समावेशन।