बाल गंगाधर तिलक को उनकी निःस्वार्थ देशभक्ति, अदम्य साहस, स्वतंत्र और सबल राष्ट्रीय प्रवृत्ति के कारण स्वाधीनता आंदोलन के अग्रणी नेताओं में माना जाता है। डॉ.आर.सी मजूमदार लिखते है, ‘‘अपने देश प्रेम तथा अथक प्रयत्नों के परिणाम स्वरूप बाल गंगाधर तिलक लोकमान्य कहलाये जाने लगे और उनकी एक देवता के समान पूजा होने लगी। वे जहां कहीं भी जाते थे, उन्हें राजकीय समान तथा स्वागत प्राप्त होता था।’’ तिलक के 1889 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की सदस्यता लेने के साथ ही उनके राजनीतिक विचारों के क्रम का प्रारम्भ होता है। उन्होंने देश की सामान्य जनता को कांग्रेस के साथ जुड़ने तथा कांग्रेस को निरंतर सक्रिय संस्था बनाये रखने पर जोर दिया। सन् 1889-94 के वर्षो में तिलक भी उदारवादी विचारधारा के समर्थक थे। उन्होंने इन वर्षों में कांग्रेस के उदारवादी कार्यक्रम और मार्ग का समर्थन किया और वे इस बात को स्वीकार भी करते थे कि कांग्रेस ने उदारवादी नीतियों से अनेक उपलब्धियां प्राप्त की है। लेकिन उन्होंने राजनीतिक चिंतन का मूलाधार उदारवादियों से भिन्न था, अतः वे अधिक समय तक उदारवादी विचारधारा के साथ जुड़े नहीं रहे।
शब्दकोशः सांस्कृतिक राष्ट्रवाद, स्वदेशी, बहिष्कार, साम्राज्यवाद।