लोक कल्याण और मानवता पर किये गये उपकार की दृष्टि से हिन्दी का म/यकालीन भक्ति-साहित्य न केवल भारत की अपितु विश्व-साहित्य की अमूल्य निधि है। मनुष्य को ईश्वर से, भक्ति से, ज्ञान से और परस्पर सामाजिक दृष्टि से जोड़ने में इसने एक सशक्त सेतु का कार्य किया है। सगुण भक्ति में विश्वास रखने वालों ने राम और कृष्ण के रूप में आदर्श मानवता के रूपक गढ़े हैं वहीं निर्गुण संत कवियों ने समाज सुधार, लोक कल्याण एवं सामाजिक सद्भाव की नींव रखी है। ऐसे महान सन्त कवियों में कबीर, नानक और नामदेव के साथ-साथ दादू दयाल का अपना एक महत्वपूर्ण एवं उल्लेखनीय स्थान है। उनका कृतित्व दोहांे, पदों व साखियों के रूप में उपलब्ध है। दादू के जीवन और दर्शन में एकेश्वरवाद, निर्गुण निराकार ईश्वर की उपासना, ज्ञान, वैराग्य एवं भक्ति की महत्ता, सात्विक जीवन, जाति एवं वर्गभेद की आलोचना, निश्छल समर्पण, रहस्यवाद, उत्कट प्रेमानुभूति, सत्संगति की महत्ता, दया, ममता एवं करूणा जैसे मानवीय मूल्यों की स्वीकृति अपने सफलतम स्तर पर हुई है। ’प्रभुजी तुम चंदन हम पानी’ जैसे पदों में उनका भाव एवं कलापक्ष अपनी चरमसीमा पर पहुॅंचा हुआ प्रतीत होता है।
शब्दकोशः एकेश्वरवाद, रहस्यवाद, निर्गुण ब्रम्ह, जीवन-दर्शन, अलख निरंजन, अलख दरीबा।